Friday, March 30, 2007

पलकों की पगडंडियों पर |

उमड़ पड़ी है यादें फिर समय सीमायें लाँघ ,
बंद हो पलकें , है मिलन की ये मांग ,
क्योंकि फिर देखा है तुम्हें ,
पलकों की पगडंडियों पर

दबे पैर , हाँथ लिए प्रेम चिराग,
छवि , आहट छेड़ देती है प्रेम राग,
है कदम चूमने को आतुर , उन्मत्त मन,
पलकों की पगडंडियों पर

आज भी तुम भूली नही मेरी पसंद,
तन पर डाले नीली चुनर , गाती हो मंद-मंद ,
सोचा! कर लूँ क़ैद , तुम्हारी जीवित छवि को,
पलकों की पगडंडियों पर

साँझ ढली, आई है लालिमा आंखों में उतर ,
रोक कर रक्त प्रवाह, हृदय की ओर अग्रसर,
प्रेम दिवाकर उदित करने तुम ,
पलकों की पगडंडियों पर

अब व्याकुल हो गया मन मिलन को,
डूबकर आँखों में तुम्हारी,
भूल जाऊं विछोह की तड़पन को,
आ जाऊं त्याग कर देह- संसार,
पथराई पलकों की पगडंडियों पर

फिर! मझधार में चली गयी , छोड़कर तुम ,
साथ निभाने की शपथ, तोड़कर तुम,
स्वप्न टूटा , पलकें खुली ,
तुम हो गई गुम ,
पलकों की पगडंडियों पर

वर्षों बीते तुम्हारी मृत्यु को ,
फिर भी तुम जीवित हो,
मिलन वचनों को निभाती हुई ,
प्रेम आस दृढ़ कराती हुई,
मेरी पलकों की पगडंडियों पर

फिर वही कराहता ज़र्ज़र मन,
सपनों में ढूँढता अपनापन ,
आश्रू प्रवाह में डूबती पलकें ,
आस लगाए, तुम फिर आओगी ,
पलकों की पगडंडियों पर

-------दिनांक : २९ जून 2000

4 comments:

Divine said...

I wonder who your muse is... :)

Push. said...

आज भी तुम भूली नही मेरी पसंद,
तन पर डाले नीली चुनर , गाती हो मंद-मंद

possibly the best line. [:D]

Unknown said...

उमड़ पड़ी है यादें फिर समय सीमायें लाँघ ,
बंद हो पलकें , है मिलन की ये मांग ,
क्योंकि फिर देखा है तुम्हें ,
पलकों की पगडंडियों पर

gud one:)

Manish Kumar said...

thanks divine, push and anupama.

i don't think my muse will so soon :).
"sath nibha ke jayegi,
har kasam nibhwa ke jayegi,
jo thode sar pe bache hain
unko ukhad ke jayegi" :)