हथेली पर गहरी खीची ,
किस्मत का जाल बिछाती हुई ,
ये हाथों की लकीरें!
मैं चला जा रहा हूँ इन लकीरों पर ,
जाने कहॉ ले जाएँ ये हाथों की लकीरें
एक धूमिल सा आकाश,
एक काला सा प्रकाश,
घेरे है मुझको!
चलना चाहा पर,
हिल भी ना पाया,
नीचे देखा तो ,
साथ नहीँ था मेरा साया ,
मैं कहॉ हूँ खड़ा,
न थी पग तले धरा !
जाने कहॉ ले आई ये हाथों की लकीरें
डरते - डरते हाथों को हिलाया ,
तो मैं उड़ने लगा !
माथे का पसीना पोछना चाहा तो अधमरा सा हो गया !
मूठ्ठि खोली तो लिखा पाया,
'नरक में क्यों आया!'
आँखें फटी , मुँह खुला ,
सामने दिखा मौत का झूला !
गौर से देखा तो जबान लटक गई,
गुम थी हथेली से , वो हाथों कि लकीरें
अब तो मिट गई सब भूख- प्यास ,
मन में थी सिर्फ बाहर निकलने कि आस ,
आचानक हथेली पे टपका कुछ लाल सा,
बहता हुआ ललाट से, लगता है रक्त सा!
माथे कि शिकन और गहराई ,
आँखें बंद हुई और नानी याद आई!
आँखें खुली तो चीख निकल गई,
मेरी आत्मा बिस्तार से गिर गई!
कौतुक -वश हथेली को निहारा,
फिर चीख कर माँ को पुकारा ,
और पूछा ' मेरे हाथ लाल क्यों हैं ?'
जवाब मिल कि होली के रंग अभी उतरे नही
फिर देखा तो मुस्कुरा रही थी ,
वो हाथों की लकीरें
-- दिनांक : 19 मार्च 2001
Monday, March 26, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
"haathon ki lakeero pe kabhi bharosa mat karna,
kyuki taqdeer to unki bhi hoti hai jinke haath nahi hote..."
btw, very well written. But little repetitive.
चलना चाहा पर,
हिल भी ना पाया,
नीचे देखा तो ,
साथ नहीँ था मेरा साया ,
मैं कहॉ हूँ खड़ा,
न थी पग तले धरा !
जाने कहॉ ले आई ये हाथों की लकीरें
a gud flow in poetry
haathon ki lakeero pe kabhi bharosa mat karna,
kyuki taqdeer to unki bhi hoti hai jinke haath nahi hote
gud thought..meaningful poetry
hey thanks krishna,
point well said:)
and thanks for the quote.
hey thanks anupama for marking the best stanza of the poem:)
Post a Comment