Sunday, March 25, 2007

मैं और तुम|

मेरे अरमानों की कश्ती में बह रही हो,
मेरे खावाबों के साये में चल रही हो,

पर में ना राह हूँ ना मंज़िल हूँ,
क्योंकि ना मैं- मैं हूँ, ना तुम तुम हो,
तुम बस मेरे ख्यालों में गुम हो

मैं ये हूँ, मैं वो हूँ
मैं यहाँ हूँ, मैं वहाँ हूँ,
आस में, प्यास में,
ख्वाबों में, ख्यालों में,
हर पल मुझे ढूँढ रही हो,
पर मैं न जाने कहॉ गूम हूँ,
क्योंकि न मैं- मैं हूँ,
ना तुम- तुम हो,
तुम बस मेरी यादों में गुमसुम हो

अब छोड़ो भी मुझे और मेरे अहसास को,
मधुर- दूषित कल्पना के आकाश को,
और जियो अपने प्रकाश में,
क्योंकि मैं कुछ नही, बस एक आभास हूँ,
और मान लो की ना मैं- मैं हूँ,
केवल तुम ही तुम हो,
मैं तो बस तुम्हारे शृंगार का कुमकुम हूँ

--दिनांक : ९ मार्च २००२

1 comment:

Unknown said...

Na mai mai huin , na tum tum ho.......... kya baat hai.......

Very nice............ abb jab TUM ne appko dhundhhna suru kiya tho app boltye ho ki mai kuch bhi nahi..... Bechari TUM ka dil thod diya na.......

Very well written...... so nice...