Sunday, March 25, 2007

क्या ख्वाब!

एक ताश का महल,
सामने झील में खिलता कागज़ का कँवल,
पीछे बाग़ में घाना कोहरा,
एक हवा का झोंका दिखाता झुल्फों की ओट में छुपा चेहरा
क्या वो तुम हो, हाँ वो तुम हो,
पर कौन हो तुम!
क्या ख्वाब! जो हैं नींदों से परे

एक हवा का झोंका,
और हथेली पे ताश का गुलाम,
क्या साज़ के सुर,
क्या आवाज़ के नुपुर,
और तुम ताश की बेगम
और तब इक्का मुश्कुराया,
बादशाह के साथ प्यादे भी लाया,
गिराया शतरंज की बिसात पर,
फिर उजाले से उभरा एक हाँथ,
क्या वो तुम हो, हाँ वो तुम हो,
पर कौन हो तुम!
क्या ख्वाब! जो हैं सपनो के आकर से बड़े

फिर घोड़ों के चापों की आवाज़,
मैं फिक्वाया गया बिसात से,
पर नही तेरी याद से,
गिरा जाकर मन में अपने,
देखी तस्वीर धुंधली तेरी,
जिसकी शकल न बनी थी पूरी,
पर सुनाई दी तेरी आवाज़,
कि मैं खड़ी हूँ तेरे पास,
क्या वो तुम हो, हाँ वो तुम हो,
पर कौन हो तुम!
क्या ख्वाब! जो पल्को पर हैं बिखरे पड़े

और फिर तपिश अगन की,
जल गए सारे कागज़ के कँवल,
बस फर्श पे बिखरी राख,
उड़ते, उठते - गिरते ताश के ईक्के,
जलते- दौड़ते झील की ओर, शतरंज के प्यादे,
कहॉ वो बाग़, कहॉ वो कोहरा,
बस झुंस में दमकता एक चेहरा,
क्या वो तुम हो, हाँ वो तुम हो,
पर कौन हो तुम!
क्या ख्वाब!!!

फिर हुई दरवाज़े पे दस्तक
और सारा महल ढह गया
कुछ तिनके इधर-उधर बिखरे पड़े,
और दूर- दूर तक मैं, सिर्फ मैं ,
पर कौन हूँ मैं!
क्या ख्वाब!
जो सदियों से थे आँखों में सोये पड़े ।

दरवाज़ा खोला तो तुमको पाया,
तुम स्वप्न सुंदरी या कोई माया,
शुन्य हो गई सपनो से दूरी ,
अधूरी तस्वीर बन गई पूरी,
सामने खड़ी तुम , मेरी हो,
पर कौन हो तुम!
क्या ख्वाब!!!

-- दिनांक : २७ फेब्रुअरी २००२

3 comments:

anurag said...

बहुत सही लिखा है।

Anonymous said...

Very nice ........ Bahhot khoobsuratti ke sath "" TUM "" ko describe karne ki kosish ki gayi hai......... ... Very nice ........ I liked it very much ..........

but unfortunately hakikat kuch nahi and TUM sirf ek khwab hai.... :-(

Manish Kumar said...

thanks anurag and kumud!

"kambakht kehte hain ki ishk mein need nahi aati hai, -2
koi humse bhi to pyar kare,
humen neend bahut aati hai :)"