मैं जन्म, जीवन व मृत्यु का आधार चाहता हूँ ।
मैं भारत भूमी पर जन्म बारम्बार चाहता हूँ ।
विश्व का तिलक,
भूमी का आभूषण,
मतृत्व का भूषन,
और भारत का चहुमुखी विस्तार चाहता हूँ ।
मैं जन्म, जीवन व मृत्यु का आधार चाहता हूँ ।
लोगों का कोमल स्नेह,
वृधों का आशीर्वाद,
गॉव की हरियाली,
शहर की आकर,
और भारत माता का प्यार चाहता हूँ ।
हिमालय की ऊंचाई,
मानवता की गहराई,
गंगा की पवित्रता,
आत्म की स्वच्छता,
और भारत भूमि पर जन्म लेकर,
अपना उद्धार चाहता हूँ।
मैं जन्म, जीवन व मृत्यु का आधार चाहता हूँ ।
सत्य का आकाश,
भारत का विकास ,
मानवता का प्रकाश,
और इस धर्मनिरपेक्ष भूमि पर ईश्वर का वास चाहता हूँ।
मैं भारतीयता का सम्मान ,
बहुमुखी संकृति का आंचा,
की सौंधी खुशबु
माता की चरण धूलि चाहता हूँ,
मैं जन्म, जीवन व मृत्यु का आधार चाहता हूँ ।
Sunday, April 15, 2007
Sunday, April 8, 2007
देशप्रेम! एक विडम्बना है ।
वह जो भावों से परिपूर्ण भवन के आधार की कल्पना है
आज के युग में आभावों से परिपक्वा मानव की विडम्बना है ।
कण- कण भावहीन है,
फिर भी भावों के प्रभाव का ही नाम जपना है ।
शरीर, मन , आत्म सब परायी है,
केवल धन ही अपना है
भ्रष्टाचार में लिप्त!
आत्म की आवाजों को सुनना, एक पागलपन है ।
सत्य, अहिंसा , प्रेम नही आज के आदर्श,
बल्कि लोभ, लालच और कमाना है।
मन में विदेश सुख की आस है,
और पराया देश ही अपना है ।
ओ ! धनवृष्ती को आतुर नयन,
देशप्रेम केवल एक विडम्बना है।
दिनांक : १३ जून १९९९ ।
आज के युग में आभावों से परिपक्वा मानव की विडम्बना है ।
कण- कण भावहीन है,
फिर भी भावों के प्रभाव का ही नाम जपना है ।
शरीर, मन , आत्म सब परायी है,
केवल धन ही अपना है
भ्रष्टाचार में लिप्त!
आत्म की आवाजों को सुनना, एक पागलपन है ।
सत्य, अहिंसा , प्रेम नही आज के आदर्श,
बल्कि लोभ, लालच और कमाना है।
मन में विदेश सुख की आस है,
और पराया देश ही अपना है ।
ओ ! धनवृष्ती को आतुर नयन,
देशप्रेम केवल एक विडम्बना है।
दिनांक : १३ जून १९९९ ।
मेरा भविष्य !
मेरे मन की अनुभूति,
मेरी आशाओं की रेखाकृती,
सफल मुक्त सा आभास,
मेरी कल्पना, मेरा विश्वास,
यूँही, सपनो के आकाश में,
मिला मैं आज अपने भविष्य से ।
नन्हा सा, कोमल सा,
पलता मेरे मन में ,
जैसे आजन्म शिशु हो मतृ तन में,
ढूँढता - खोजता अपने आकर को,
मन की गहराई में,
लालसा की तनहाई में,
मेरा भविष्य, वो मेरा कल!
आवाज़ में कम्पन,
माथे पे शिकन,
चमकता सर, लटकती उदर,
ढलती उमर, झूलती क़मर ,
ये तो बस एक झलक थी,
और डरने को बहुत था बाकी,
यूँही! मिला मैं आज मिल अपने भविष्य से ।
वोही दिन, वोही रात,
वोही धरती, वोही आकाश,
बस सारी दुनिया ही बदल गयी!
वो बचपन की प्यारी दुनिया,
बस यादों में है हमारी दुनिया ,
यूँही , बस यूँही ।
मेरा बस एक सवाल "क्या तुम खुश हो?",
और जवाब में वो चिन्ता के अम्बार,
आज भी व्याकुल हूँ, कल भी चिंतित होऊंगा ।
मेरा भविष्य मैंने ऐसा तो ना सोचा है ।
यूँही, आज मिल मैं अपने भविष्य से।
दिनांक : ७ मई २००२ ।
मेरी आशाओं की रेखाकृती,
सफल मुक्त सा आभास,
मेरी कल्पना, मेरा विश्वास,
यूँही, सपनो के आकाश में,
मिला मैं आज अपने भविष्य से ।
नन्हा सा, कोमल सा,
पलता मेरे मन में ,
जैसे आजन्म शिशु हो मतृ तन में,
ढूँढता - खोजता अपने आकर को,
मन की गहराई में,
लालसा की तनहाई में,
मेरा भविष्य, वो मेरा कल!
आवाज़ में कम्पन,
माथे पे शिकन,
चमकता सर, लटकती उदर,
ढलती उमर, झूलती क़मर ,
ये तो बस एक झलक थी,
और डरने को बहुत था बाकी,
यूँही! मिला मैं आज मिल अपने भविष्य से ।
वोही दिन, वोही रात,
वोही धरती, वोही आकाश,
बस सारी दुनिया ही बदल गयी!
वो बचपन की प्यारी दुनिया,
बस यादों में है हमारी दुनिया ,
यूँही , बस यूँही ।
मेरा बस एक सवाल "क्या तुम खुश हो?",
और जवाब में वो चिन्ता के अम्बार,
आज भी व्याकुल हूँ, कल भी चिंतित होऊंगा ।
मेरा भविष्य मैंने ऐसा तो ना सोचा है ।
यूँही, आज मिल मैं अपने भविष्य से।
दिनांक : ७ मई २००२ ।
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