उन पत्तों की भीड़ में खो आँख मिचौली खेलना ,
पवन पे चढ़ कर यूँ उड़ जाना,
की मानो पंछी बन चाँद छूने जाता हूँ ।
बारिश की झड़ी में यूँ बह जाना ,
की मानो मछली बन सागर तैरने जाता हूँ ।
वो बचपन न भूला पाउँगा मैं ,
कैसे दूर जाऊंगा मैं, नही सोच पता हूँ ।
कभी बारिश में भीगती उस चंचला के लिए ,
सौंधी खुशबू बन जाना ,
और कभी पेड़ों की छाओं में सोती उस मधुमती को
लोरी गा सुनाना
कैसे भूलूं उस श्यामला के स्पर्श को ,
कैसे छोड़ जाऊँ उसको,
खुशबू से जिसकी मैं, अपनी सांसे नही चुरा पता हूँ ।
पथिक के पैरों से , गाड़ी के पहियों से,
रोज चला जा रहा हूँ ,
इथ उड़ता , तिथ गिरता ,
बेबस सा ,
हर कदम पे मैं , अपनी यादें छोड़ता जाता हूँ ।
कंकर हूँ मैं , राह से कैसे जुदा हो पाउँगा ,
तुझसे जन्मा हूँ मैं , रूठ कर कहाँ जाऊंगा ।
Saturday, January 24, 2009
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7 comments:
पथिक के पैरों से , गाड़ी के पहियों से,
रोज चला जा रहा हूँ ,
इथ उड़ता , तिथ गिरता ,
बेबस सा ,
हर कदम पे मैं , अपनी यादें छोड़ता जाता हूँ ।
.....bahut hi shaandaar ehsaas
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ati sunder.
congrats
really good thoughts........
very nice
Beautiful!
Simply Wow.....
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